क़रार इस दिल को आना अब ज़रूरी तो नहीं है नया इक ग़म बसाना अब ज़रूरी तो नहीं है ज़रूरी तो नहीं है अब उसे आवाज़ देना और उस का लौट आना अब ज़रूरी तो नहीं है ज़रा सा मुस्कुरा देने में अब कैसा तरद्दुद कि इतना ग़म छुपाना अब ज़रूरी तो नहीं है तो क्या ख़ामोश रह कर भी सुनाई दे रहा हूँ मगर सब कुछ छुपाना अब ज़रूरी तो नहीं है सँवरने के लिए बेताब है दिल चश्म-ए-नम में ये आईना दिखाना अब ज़रूरी तो नहीं है हुनर ख़्वाबों में दर आने का हम भी जानते हैं पर उस को आज़माना अब ज़रूरी तो नहीं है ज़रूरी तो नहीं है अब हर इक वा'दा निभाना हर इक वा'दा निभाना अब ज़रूरी तो नहीं है