रात आँखों में नींद क्या आई नींद क्या आई इक बला आई बंद कमरे में जब लिया तिरा नाम चार अतराफ़ से हवा आई याद की रथ पे जो सवारी थी याद उस को कहीं गिरा आई दिन बहुत देर तक रहा दिन भर रात आई तो बे-क़बा आई चिटख़िनी जूँ लगा के पल्टा तो एक आवाज़ आश्ना आई इन रगों में कहीं नहीं थी साँस उस के छूने पे जा-ब-जा आई