क़ौल तेरा शौक़ मेरा चाहिए झूठ सच के वास्ते क्या चाहिए हो सके क्या अपनी वहशत का इलाज तेरे कूचे में भी सहरा चाहिए गो तिरी नज़रों से कल गिर ही पड़ें आज तो कोई सहारा चाहिए हर तरफ़ है तेरे बीमारों का शोर हर गली में इक मसीहा चाहिए क्यों न छाए मय-कशों के सर पर अब्र कुछ गुनहगारों का पर्दा चाहिए काश दे कर कुछ गिरह से हो नजात तुझ को ज़ाहिद दीन-ओ-दुनिया चाहिए क्यों नहीं देते तसल्ली 'दाग़' को उस से लीजे गर तमन्ना चाहिए