पोशीदा जब हो राज़ कि मुँह में ज़बाँ न हो हम बात भी करें तो बग़ैर-अज़-फ़ुग़ाँ न हो ले जाएँ आह मुझ को मिरी बद-गुमानियाँ ज़ालिम वहाँ कि तेरा पता भी जहाँ न हो ज़ाहिद अज़ाब-ए-इश्क़-ए-सनम लुत्फ़-ए-हक़ समझ या'नी अज़ाब हम को यहाँ हो वहाँ न हो नैरंगी-ए-चमन जो मुझे याद आ गई गुल पर हुआ गुमान कि बर्ग-ए-ख़िज़ाँ न हो तुम को मज़ा न देगी कभी दास्तान-ए-इश्क़ जब तक हमारे मुँह से ये क़िस्सा बयाँ न हो नाक़े को क़ैस क्या न लगा लाए राह पर लैला का राज़दार अगर सारबाँ न हो तोहमत किसी को ज़ुल्म की ऐ 'दाग़' क्यों लगाएँ शिकवा बुतों से क्या जो ख़ुदा मेहरबाँ न हो