क़यामत वक़्त से पहले गुज़र जाए तो अच्छा हो नज़र कुछ देर जल्वों पर ठहर जाए तो अच्छा हो अगर ग़म ज़ब्त की हद से गुज़र जाए तो अच्छा हो फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू दिल से उतर जाए तो अच्छा हो मिरी बर्बादियाँ ही दर्स-ए-इबरत काश बन जाएँ किसी सूरत से ये दुनिया सँवर जाए तो अच्छा हो मोहब्बत मो'तक़िद कब तक रहेगी अश्क-ओ-शबनम की मिरा साग़र मय-ए-इरफ़ाँ से भर जाए तो अच्छा हो ज़माना मेरे दिल की धड़कनों को खेल समझा है ये आलम ख़ैर से यूँही गुज़र जाए तो अच्छा हो मुसीबत दर-हक़ीक़त एक तम्हीद-ए-मसर्रत है मआल-ए-ग़म पे दुनिया की नज़र जाए तो अच्छा हो नज़र आई तो है धुँदली सी इक तस्वीर साहिल पर कहीं अब दिल की कश्ती भी ठहर जाए तो अच्छा हो फ़रेब-ए-हुस्न की रंगीनियाँ बिखरी हैं गुलशन में मोहब्बत बे-नियाज़ाना गुज़र जाए तो अच्छा हो ज़माना बाग़बाँ के ज़ुल्म पर तन्क़ीद करता है ज़रा मजबूरियों पर भी नज़र जाए तो अच्छा हो जहाँ लाखों तमन्नाओं का ख़ूँ ग़म ने बहाया है वहीं जीने की ये हसरत भी मर जाए तो अच्छा हो कहाँ तक 'शौक़' देखा जाए आईना फ़रेबों का अब इन आँखों से ये ख़्वाब-ए-सहर जाए तो अच्छा हो