रास आया है मुझे वहशत में मर जाना मिरा वो मुझे रोए ये कह कर हाए दीवाना मिरा ग़ैर को साक़ी ने जब भर कर दिया जाम-ए-शराब आँसुओं से हो गया लबरेज़ पैमाना मिरा मेरे रोने पर वो उन का मुस्कुराना बार बार और बलाएँ ले के वो क़दमों पे गिर जाना मिरा हज़रत-ए-नासेह की बातें मैं समझता ही नहीं ना समझ हैं दिल-लगी समझे हैं समझाना मिरा ऐ 'रसा' वो भी शरीक-ए-महफ़िल-ए-मातम हुए ख़िज़र भी मरते हैं जिस पर वो है मर जाना मिरा