रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही मेरी आँखों में नमी ज़िंदा रही हार जाएगी यक़ीनन तीरगी गर मुसलसल रौशनी ज़िंदा रही पहले सन्नाटों में वो मौजूद थी शोर में भी ख़ामुशी ज़िंदा रही ज़िक्र होगा इस का भी सदियों तलक कैसे कैसे ये सदी ज़िंदा रही दर्द को 'आज़र' दुआ मैं क्यूँ न दूँ दर्द ही से शाएरी ज़िंदा रही