रात दिन एक सा रहता है उजाला मिरे घर आतिशीं आह है या आठ पहर की बत्ती पड़ गई रखते ही नासूर-ए-जिगर में ठंडक उस का पैकाँ भी है क्या ख़ूब असर की बत्ती शब-ए-फ़ुर्क़त का अंधेरा न गया पर न गया काम कुछ मोम की आई न अगर की बत्ती रात घर उस के दिये में कहीं जलती थी ज़रूर तार-हा-ए-निगह-ए-अह्ल-ए-नज़र की बत्ती शम्अ' की मुझ को ज़रूरत नहीं वल्लाह 'ज़हीर' मेरी रौशन है हर इक मिस्रा-ए-तर की बत्ती