आ के महफ़िल में तिरी ग़म से किनारा न हुआ मुझ सा दुनिया में कोई दर्द का मारा न हुआ आख़िर अश्कों ने ही सब हाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहा कुछ ज़बाँ से मिरी इज़हार का यारा न हुआ ये कहा था कि मिरे घर में वो आएँ यक दिन आ गए तैश में शायद ये गवारा न हुआ किस तरह मेरे मुक़द्दर का सितारा चमके उन की जानिब से कोई ऐसा इशारा न हुआ डर से तौहीन-ए-मोहब्बत के मैं ख़ामोश रहा नाम फिर ले के पुकारूँ ये गवारा न हुआ दर्द-ओ-ग़म जौर-ओ-सितम आह-ओ-फ़ुग़ाँ रंज-ओ-मलाल ये तो सब मिल गए 'नाज़ी' वो हमारा न हुआ