रात ग़म यादों के साए आप के सब चले आए सिवाए आप के दिल मकाँ रहने को अच्छा था मगर रोज़ बढ़ते थे किराए आप के अब समझ आया जुदा होते समय ख़ुद को भेजा था बजाए आप के बे-सबब ही सर पे ले ली ये बला हो गए बैठे-बिठाए आप के एक दिन वक़्त आ गया हम पर बुरा और फिर ख़त भी न आए आप के ख़ुद बिखरते भी रहे हम रात-भर ज़ुल्फ़-ओ-‘आरिज़ भी सजाए आप के