रात होती है हसीं चाँद जवाँ होता है फिर भी इस दिल पे कोई बार-ए-गराँ होता है अब भी यादों में तिरा अक्स अयाँ होता है जिस तरह झील का सहरा में गुमाँ होता है आज भी जल्वा-गह-ए-संग-दिली है दुनिया रक़्स तो आज भी लाशों का यहाँ होता है देख लो झाँक के इन आँखों में गर देख सको वर्ना ये दर्द कहाँ लब से बयाँ होता है मैं चला आया मगर अब भी तिरी महफ़िल में क्या कोई मेरी तरह तिश्ना-दहाँ होता है अब भी उम्मीद है दुनिया तो कभी बदलेगी अब भी आँखों में कोई ख़्वाब निहाँ होता है अक्स-ए-फ़र्दा भी दिखा देता है अहल-ए-दिल को अश्क-ए-बे-क़द्र जो आँखों से रवाँ होता है आ ही जाते हैं तिरे वहशी पे वो भी लम्हे जब तिरा दर्द ही इक राहत-ए-जाँ होता है आइए अपने क़दम आगे बढ़ाएँ कि यहाँ बंद मुफ़्लिस पे दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ होता है तेरा दीवाना सुकूँ पाता है क्यों कौन कहे जब मोहब्बत का कोई मर्सियाँ-ख़्वाँ होता है लोग जब ढूँडते हैं ऐश के कुछ जल्वे 'नदीम' अपनी आँखों में कोई और समाँ होता है