रात आई तो तड़पने के बहाने आए अश्क आँखों में तो होंटों पे तराने आए फिर तसव्वुर में ही हम रूठ के बदले पहलू फिर ख़यालों में ही वो हम को मनाने आए उन के कूचे में जो इक उम्र गुज़ारी हम ने ये कहानी भी वो ग़ैरों को सुनाने आए ये भी सच है कि हर ज़ख़्म मिला है उन से और वही चुपके से मरहम भी लगाने आए जज़्बा-ए-दीद-ए-तसव्वुर को उठाए 'आशा' अपनी आँखों में लिए ख़्वाब पुराने आए