याद तेरी जो कभी आती है बहलाने को और दीवाना बना जाती है दीवाने को हम बताएँगे तुम्हें शाना-ओ-गेसू के रुमूज़ ख़त्म कर लो हरम-ओ-दैर के अफ़्साने को उस को महफ़िल में जो देखा तपिश-ए-ग़म का शरीक ले लिया शम्अ' ने आग़ोश में परवाने को बादा-कश वाइ'ज़-ए-कज-फ़हम से क्या बहस करें उस ने देखा है बहुत दूर से मयख़ाने को जब न एहसान रहेगा न कहानी उस की आप दोहराएँगे 'एहसान' के अफ़्साने को