रात के जंगल में कोई रास्ता मिलता नहीं ऐसा उलझा हूँ कि अब अपना सिरा मिलता नहीं चुप हैं अब सारे दरीचे बंद हैं सारे किवाड़ और किसी दीवार पर कोई दिया मिलता नहीं इज़्तिराब-ए-आरज़ू का साथ दें तो किस तरह दिल पुराना हो चुका है और नया मिलता नहीं जाने किस दरिया से ख़ुश्बू बाँध कर लाती है ये देखिए तो जादा-ए-मौज-ए-सबा मिलता नहीं मुनअ'किस करता है जाने कौन मेरी हैरतें आइने को तोड़ कर भी आइना मिलता नहीं बंद होते जा रहे हैं वापसी के रास्ते लौट कर देखूँ तो कोई नक़्श-ए-पा मिलता नहीं मान लो 'अरमान' अब ख़ुश्बू के रिश्ते मर गए अब किसी गुल को किसी गुल का पता मिलता नहीं