आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त शहर को देर तक रुला ऐ दश्त किस को आवाज़ दूँ मैं तेरे सिवा कौन है मेरा आश्ना ऐ दश्त अब तो बारिश में भी नहीं हँसते तेरे पेड़ों को क्या हुआ ऐ दश्त क़ैस के पावँ में था रक़्साँ जो वो बगूला किधर गया ऐ दश्त ख़ाक ही ख़ाक को उड़ाती है ख़ूब है तेरा सिलसिला ऐ दश्त