रात के रहने का न डर कीजिए एक तो शब याँ भी सहर कीजिए लोग कहेंगे तुम्हें हरजाई है दिल में इक आलम के न घर कीजिए देखते हो मेरी तरफ़ क्या मियाँ अपनी भी सूरत पे नज़र कीजिए आ ही लिया बे-ख़बरी ने हमें कौन है याँ किस को ख़बर कीजिए ग़ैर को जा देते हो घर में अगर मेरे तईं शहर-बदर कीजिए देख निगाहें तिरी कहती है ख़ल्क़ ऐसी निगाहों से हज़र कीजिए फिर नहीं मिलना तिरा मुश्किल मियाँ जाँ का गर अपनी ज़रर कीजिए मंज़िल-ए-हस्ती में बहुत हम रहे 'मुसहफ़ी' अब याँ से सफ़र कीजिए