उसी की ज़ात को है दाइमन सबात-ओ-क़याम क़ादीर ओ हय ओ करीम ओ मुहैमिन ओ मिनआम बुरूज बारह में ला कर रखी वो बारीकी कि जिस को पहुँचे न फ़िक्रत न दानिश ओ औहाम इधर फ़रिश्ता-ए-कर्रोबी और उधर ग़िल्माँ क़लम को लौह पे बख़्शी है ताक़त-ए-इर्क़ाम ये दो हैं शम्स ओ क़मर और साथ उन के यार अतारद ओ ज़ुहल ओ ज़ोहरा मुश्तरी बहराम जो चाहें एक पलक ठहरें ये सो ताक़त क्या फिरा करेंगे ये आग़ाज़ से ले ता-अंजाम बशर जो चाहे कि समझे उन्हें सो क्या इम्काँ है याँ फ़रिश्तों की आजिज़ अक़ूल और इफ़हाम निकाले उन से गुल ओ मेवा शाख़ ओ बर्ग-ओ-बार सब उस के लुत्फ़-ओ-करम के हैं आम ये इनआ'म इसी के बाग़ से दिल शाद हो के खाते हैं छुहारे किशमिश ओ इंजीर ओ पिस्ता ओ बादाम चमक रहा है उसी की ये क़ुदरतों का नूर बहर-ज़माँ ओ बहर-साअत ओ बहर-हंगाम कि उस का शुक्र करें शब से मा-ब-रोज़ अदा इताअ'त उस की बजा लावें सुब्ह से ता-शाम 'नज़ीर' नुक्ता समझ मेहर-ओ-फ़ज़्ल-ए-ख़ालिक़ को इसी के फ़ज़्ल से दोनों जहाँ में है आराम