रात की ज़ुल्फ़ें भीगी भीगी और आलम तन्हाई का कितने दर्द जगा देता है इक झोंका पुर्वाई का उड़ते लम्हों के दामन में तेरी याद की ख़ुश्बू है पिछली रात का चाँद है या है अक्स तिरी अंगड़ाई का कब से न जाने गलियों गलियों साए की सूरत फिरते हैं किस से दिल की बात करें हम शहर है उस हर जाई का इश्क़ हमारी बर्बादी को दिल से दुआएँ देता है हम से पहले इतना रौशन नाम न था रुस्वाई का शे'र हमारे सुन कर अक्सर दिल वाले रो देते हैं हम भी लिए फिरते हैं दिल में दर्द किसी शहनाई का तुम हो 'कलीम' अजब दीवाने बात अनोखी करते हो चाह का भी अरमान है दिल में ख़ौफ़ भी है रुस्वाई का