रात क्या क्या मुझे मलाल न था ख़्वाब का तो कहीं ख़याल न था आज क्या जाने क्या हुआ हम को कल भी ऐसा तो जी निढाल न था बोले सब देख मेरी जाँ-कावी ये तो फ़रहाद का भी हाल न था जब तलक हम न चाहते थे तुझे तब तक ऐसा तिरा जमाल न था अब तो दिल लग गया है क्यूँ कि न आएँ पहले कहते तो कुछ मुहाल न था टल गया देख यूँ तिरा अबरू कि गोया चर्ख़ पर हिलाल न था टुक न ठहरा मिरे वो पास आ कर कुछ तमाशा था ये विसाल न था देख शब अपने रश्क-ए-लैला को दंग था मैं तो मुझ में हाल न था सुन के बोला तमाम क़िस्सा-ए-क़ैस इश्क़ का उस को भी कमाल न था इतना रोया लहू तू कब 'जुरअत' अभी दामन तिरा तो लाल न था