सब चले तेरे आस्ताँ को छोड़ बद-ज़बाँ अब तो इस ज़बाँ को छोड़ मत उठा यार तेरे कूचे में आन बैठे हैं दो जहाँ को छोड़ वक़्त-ए-सख़्ती के आह जाती है जान भी जिस्म-ए-ना-तावाँ को छोड़ सोहबत-ए-रास्त कब हो कज से बरार तीर आख़िर चला कमाँ को छोड़ दस्त-ए-बे-दाद-ए-बाग़बाँ से आह हम चले आख़िर आशियाँ को छोड़ बाग़ से वो फिरा तो मुर्ग़-ए-चमन लग चले साथ गुल्सिताँ को छोड़ ना-तवानी से मिस्ल-ए-नक़्श-ए-क़दम रहे नाचार कारवाँ को छोड़ हम-नशीं कह तमाम क़िस्सा-ए-इश्क़ आज-कल पर न दास्ताँ को छोड़ ये मिरा हाल है जो वो क़ातिल उठ गया दम के मेहमाँ को छोड़ जिस तरह फेर हल्क़ पर ख़ंजर दे कोई मुर्ग़-ए-नीम-जाँ को छोड़ कर जवानी पे रहम 'जुरअत' की बस ग़म-ए-इश्क़ इस जवाँ को छोड़