रात तिरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की सारी हसरत निकल गई मिरी तन-आसानी की पड़ा हुआ हूँ शाम से मैं इसी बाग़-ए-ताज़ा में मुझ में शाख़ निकल आई है रात की रानी की इस चौपाल के पास इक बूढ़ा बरगद होता था एक अलामत गुम है यहाँ से मरी कहानी की तुम ने कुछ पढ़ कर फूँका मिट्टी के पियाले में या मिट्टी में गुँधी हुई तासीर है पानी की क्या बतलाऊँ तुम को तुम तक अर्ज़ गुज़ारने में दिल ने अपने आप से कितनी खींचा-तानी की