सब को अपने ज़ेहन से झटका ख़ुद को याद किया लेकिन ऐसा सब कुछ लुट जाने के बा'द किया उस को उस की अपनी क़ुर्बत ने सरशार रक्खा मुझे तो शायद मेरे हिज्र ने ही बरबाद किया मैं भी ख़ाली हो कर अपने घर लौट आया हूँ उस ने भी इक वीराने को जा आबाद किया किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए कैसी प्यारी रूहों को मेरी औलाद किया इश्क़ में 'अंजुम' ले डूबी है थोड़ी सी ताख़ीर जन्मों पहले जो वाजिब था वो मा-बाद किया