रात उठी दिल से यूँ फ़ुग़ाँ दिलकश जैसे का'बा की हो अज़ाँ दिलकश उन के कूचे का है समाँ दिलकश वो ज़मीं दिलकश आसमाँ दिलकश दिल-शिकन वक़्त उन के जाने का आमद आमद का वो समाँ दिलकश आप की बातें दिल-फ़रेब तो हैं न सही मेरी दास्ताँ दिलकश लुत्फ़-ए-तर्क-ए-तअल्लुक़ात न पूछ है मकाँ से भी ला-मकाँ दिल-कश हुस्न का जिस में ज़िक्र हो 'मुज़्तर' क्यों न हो फिर वो दास्ताँ दिल-कश