रो रहा हूँ मैं कि नक़द-ए-दिल गया वो ये ख़ुश हैं इक ख़ज़ाना मिल गया याद उन की आ गई जब दिल गया इक न इक हमदर्द मुझ को मिल गया शौक़ में ताक़त तो देखो ज़ोफ़ की बैठे बैठे मैं कई मंज़िल गया कह गया कोई ये मेरी क़ब्र पर बेवफ़ा हूरों से जा कर मिल गया पा-ए-रंगीं चूमने के शौक़ में ख़ून हो कर दिल हिना में मिल गया आह की और उन के दिल में राह की इक क़दम चल कर कई मंज़िल गया एक पर्दा पड़ गया महमिल पे और जब ग़ुबार-ए-क़ैस ता-महमिल गया दिल लिया तो दर्द क्यों रहने दिया इतना पूछूँगा अगर वो मिल गया पूछता है कोई दिल पर रख के हाथ कहिए अब तो इज़्तिराब-ए-दिल गया आप तो आराम से सोते रहे और यहाँ नालों से आलम हिल गया उफ़ निगाह-ए-यास का 'मुज़्तर' असर दूर तक रोता हुआ क़ातिल गया