राज़-ए-दिल क्या ज़बान से निकला घर का भेदी मकान से निकला क्या मिला हाल-ए-दिल बयाँ कर के क्या नतीजा बयान से निकला हो गया हम-कनार-ए-मंज़िल-ए-शौक़ दिल जो वहम-ओ-गुमान से निकला रात ख़ल्वत में चैन से गुज़री दिल का अरमान शान से निकला आ गया दिल का ख़ून मिज़्गाँ पर दुर-ए-शहवार कान से निकला जब कहा मैं ने आप आएँगे यक-ब-यक हाँ ज़बान से निकला होंगे दोनों जहाँ तह-ओ-बाला वो कभी ला-मकान से निकला वो ये कहते हैं खींच लेंगे ज़बाँ हर्फ़ कोई ज़बान से निकला आह यूँ दिल से शाम-ए-ग़म निकली तीर जैसे कमान से निकला लब खुले रह गए सर-ए-महफ़िल क्या कहा क्या ज़बान से निकला मुफ़्त में ऐ 'गिरामी' ख़्वार हुए काम क्या पासबान से निकला