सर पे डाले हुए वो गर्द-ए-मलाल आता है जब उसे मेरी वफ़ाओं का ख़याल आता है मैं जो चाहूँ तो बदल दूँ अभी नज़्म-ए-आलम क्या करूँ तेरी मशिय्यत का ख़याल आता है कौन होता है बुरे वक़्त का साथी हम दम ऐसे आलम में किसे किस का ख़याल आता है फ़ित्ने उठ उठ के क़दम-बोस हुए जाते हैं किस क़यामत की वो चलते हुए चाल आता है कोई आता तो है तस्कीन की ख़ातिर ऐ दिल वो न आएँ न सही उन का ख़याल आता है सारी दुनिया नज़र आती है 'गिरामी' तारीक जब मुझे दिल की तबाही का ख़याल आता है