रब करेगा अब मिरी उम्मीद-अफ़ज़ा सब्र कर ए'तिमाद-ए-दिल मुझे कहता है मेरा सब्र कर जाँ-फ़िशानी कर के मैं ने ढूँढा मेरा जाँ-फ़िज़ा बोल कर जाँ-बाज़ मुझ को उस ने बोला सब्र कर दास्ताँ आसाँ नहीं होती मोहब्बत की मगर सर चढ़ा मुझ पे जुनूँ दीवानगी का सब्र कर जब मुसलसल मैं ख़ुदा से मिन्नतें करता रहा तब मुझे बोला कि मैं ने भी किया था सब्र कर इक सिरे से बुन दिया है उस ने मुझ को लम्स से इक सिरे से फिर उधेड़ेगा ज़माना सब्र कर