रब्त-ए-पिन्हाँ की सदाक़त है न मिलना तेरा तेरे मिलने ही की सूरत है न मिलना तेरा क्यूँ मिरा शौक़-ए-फ़रावाँ है ब-हर लम्हा फ़ुज़ूँ क्या कोई राज़-ए-मशिय्यत है न मिलना तेरा लाला-ओ-गुल मह-ओ-अंजुम से गिला है क्या क्या और मक़्सूद-ए-शिकायत है न मिलना तेरा किसी सूरत किसी उनवाँ से तलाफ़ी न हुई किस क़दर तल्ख़ हक़ीक़त है न मिलना तेरा ज़िंदगी ने तिरे मिलने का बहाना समझा वर्ना दर-अस्ल क़यामत है न मिलना तेरा फिर भी तेरे लिए आवारा-ए-ग़ुर्बत है 'रविश' गरचे शायान-ए-मोहब्बत है न मिलना तेरा