शिकवा ज़बान से न कभी आश्ना हुआ नज़रों से कह दिया जो मिरा मुद्दआ हुआ अल्लाह-री बे-ख़ुदी कि चला जा रहा हूँ मैं मंज़िल को देखता हुआ कुछ सोचता हुआ दुनिया लरज़ गई दिल-ए-ईज़ा-पसंद की ना-आश्ना-ए-दर्द जो दर्द-आश्ना हुआ फिर ऐ दिल-ए-शिकस्ता कोई नग़्मा छेड़ दे फिर आ रहा है कोई इधर झूमता हुआ