रफ़्ता रफ़्ता बन न जाए प्यार अफ़्साना तिरा देख कर कहते हैं मुझ को लोग दीवाना तिरा शम्अ' की लौ पर ही जल जाना जिसे मक़्सूद है वो कहीं क्यों जाँ बचाए हट के परवाना तिरा हम तिरे दर से चले जाएँगे इक दिन ना-मुराद क्या कहेगा फिर तुझे हर अपना बेगाना तिरा प्यार की इक नींद मीठी अपनी आँखों में लिए बैठे बैठे देखता है ख़्वाब दीवाना तिरा फिर किसी के काम आए ये तो इस क़ाबिल नहीं रह गया है बन के 'आलम' दिल ये काशाना तिरा