रफ़्तार जितनी तेज़ रखो कोई हद नहीं मैं रौशनी हूँ मुझ को किसी से हसद नहीं इंसान अपनी जंग का ख़ुद फ़ैसला करें ख़ुशनूदी चाहता हूँ ख़ुदा की मदद नहीं मंतिक़ से तेज़ होती है हिस्स-ए-जमालियात मेरे किए हुए किसी दा'वे का रद्द नहीं घबरा के कैमरे की तरफ़ देखता है क्या तस्वीर खींच लेगा तिरे ख़ाल-ओ-ख़द नहीं आज़ाद रहने वालों की ख़ातिर भरा जहान महसूर होने वालों की कोई रसद नहीं