राह भोला हूँ मगर ये मिरी ख़ामी तो नहीं मैं कहीं और से आया हूँ मक़ामी तो नहीं ऊँचा लहजा है फ़क़त ज़ोर-ए-दलाएल के लिए ऐ मिरी जाँ ये मिरी तल्ख़-कलामी तो नहीं उन दरख़्तों को दुआ दो कि जो रस्ते में न थे जल्दी आने का सबब तेज़-ख़िरामी तो नहीं तेरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता ये मिरा दिल है कोई ख़ाली असामी तो नहीं मैं हमा-वक़्त मोहब्बत में पड़ा रहता था फिर किसी दोस्त से पूछा ये ग़ुलामी तो नहीं बरतरी इतनी भी अपनी न जता ऐ मिरे इश्क़ तू 'नदीम'-ओ-'ज़की' ओ 'काशिफ़'-ओ-'कामी' तो नहीं