रह-ए-जफ़ा की निशानी में लिख दिया तुझ को कि अपनी ज़िंदा कहानी में लिख दिया तुझ को किताब-ए-याद-ए-निहानी में लिख दिया तुझ को वफ़ा ने यूसुफ़-ए-सानी में लिख दिया तुझ को ख़मोशियों से नहीं नाम लिख सकी तेरा तो अब के शो'ला-बयानी में लिख दिया तुझ को ये उँगलियाँ तो उसे रोकती रहीं लेकिन क़लम ने ज़ोर-ए-बयानी में लिख दिया तुझ को ज़बान चुप थी कि था पास-ए-हुरमत-ए-उल्फ़त तो दिल ने चश्म के पानी में लिख दिया तुझ को वफ़ूर-ए-जज़्ब के आगे न कोई पेश चली तड़पती याद पुरानी में लिख दिया तुझ को उड़ा के लाई सबा तेरी ख़ुशबुएँ ऐसे कि मैं ने रात की रानी में लिख दिया तुझ को मता-ए-दर्द ने उकसाया इस तरह से 'नसीम' कि मैं ने ज़ुल्म के बानी में लिख दिया तुझ को