तिरे साँचे में ढलना चाहता है ये दिल करवट बदलना चाहता है मिरा दिल घर था इक जज़्बे का लेकिन वो अब घर से निकलना चाहता है समुंदर में बुझा कर अक्सम-ए-बरहम कि अब सूरज पिघलना चाहता है मिरी नींदों को भटकाया है उस ने वो ख़्वाबों से निकलना चाहता है उमंगों को समेटे ना-तवाँ दिल खिलौनों से बहलना चाहता है सजा कर ख़ार दामन में ये रस्ता मिरे ख़ूँ से महकना चाहता है बगूलों से हुआ रौशन ये सहरा तिरी सूरत में ढलना चाहता है