राह-ए-उल्फ़त में रखे जब थे क़दम याद है कुछ बाज़ आए थे कभी आप न हम याद है कुछ कैसे इक दूजे के हम ऐब छुपा रखते थे पारसा यूँ तो कभी तुम थे न हम याद है कुछ होश में रह के भी मदहोश बने फिरते थे हम तिरी आँखों का रखते थे भरम याद है कुछ मो'तक़िद जब नहीं होते थे वफ़ा के हम तुम न कोई दर्द न कुछ रंज-ओ-अलम याद है कुछ मसअला झूट को सच करने का जब आया कभी तुम ने खाई थी मिरे सर की क़सम याद है कुछ