रह जाए या बला से ये जान रह न जाए तेरा तो ऐ सितम-गर अरमान रह न जाए जो दिल की हसरतें हैं सब दिल में हों तो बेहतर इस घर से कोई बाहर मेहमान रह न जाए इक़रार-ए-वस्ल तो है ऐसा न हो न आएँ मुश्किल हमारी हो कर आसान रह न जाए ऐ सोज़-ए-ग़म जला दे ऐ दर्द ख़ूँ रुला दे कुछ उन की दिल-लगी का सामान रह न जाए सब मंज़िलें हुईं तय महशर है और ऐ दिल ये एक रह गया है मैदान रह न जाए वो जाम-ए-कुफ़्र-परवर भर दे कि मस्त कर दे मस्तों के दिल में साक़ी ईमान रह न जाए आ कर पलट न ख़ाली ऐ मर्ग जान ले जा 'फ़ानी' के सर पे तेरा एहसान रह न जाए