राह में घर के इशारे भी नहीं निकलेंगे चाँद डूबा तो सितारे भी नहीं निकलेंगे डूबने के लिए साहिल पे खड़ा हूँ मैं भी बंदिशें तोड़ के धारे भी नहीं निकलेंगे ठहर ऐ सैल-ए-रवाँ वर्ना ये बस्ती ही नहीं तेरे ग़र्क़ाब किनारे भी नहीं निकलेंगे मेरी बस्ती बड़ी मुफ़लिस है मगर ऐ हातिम लोग यूँ हाथ पसारे भी नहीं निकलेंगे तुम अजब लोग हो आँगन के लिए रोते हो अब मकानों में उसारे भी नहीं निकलेंगे रात भर जाग के हम ने जो कमाई की है उस से तो दिन के ख़सारे भी नहीं निकलेंगे तुम भी 'ग़ालिब' की तरह लाख जतन कर लो 'शकील' सारे अरमान तुम्हारे भी नहीं निकलेंगे