रहा न जीने का दिल में जो हौसला बाक़ी तो ज़िंदा रहने में क्या रह गया मज़ा बाक़ी वो छीन ले गए सारी मताअ'-ए-अज़्म-ओ-अमल हमारे हिस्से में बस रह गई दुआ बाक़ी ये हम-सफ़र मिरे किन रास्तों पे चल निकले रफ़ाक़तों के नहीं जिन पे नक़्श-ए-पा बाक़ी हज़ार दामन-ए-दिल को छुड़ा रहा हूँ मगर वही है आज भी यादों का सिलसिला बाक़ी कुछ ऐसा शहर पे छाया कुदूरतों का ग़ुबार कहीं बचा कोई मंज़र न जाँ-फ़ज़ा बाक़ी इक इज़िदहाम है चेहरों का गिर्द-ओ-पेश मगर न हम-ज़बाँ कोई बाक़ी न दिलरुबा बाक़ी बहुत मिटाए गए ज़ुल्म के नुक़ूश मगर लहू के दाग़ अभी तक हैं जा-ब-जा बाक़ी