शिकस्ता-हाल सफ़ीना सँभालने वाला कोई नहीं है भँवर से निकालने वाला कोई नहीं है तिरी याद तेरे ग़म के सिवा अज़ाब-ए-गर्दिश-ए-दौराँ को टालने वाला नवाज़ दे जिसे चाहे ब-यक निगाह-ए-करम गुमाँ को नक़्श-ए-हक़ीक़त में ढालने वाला नफ़स नफ़स के अमल का हिसाब रखता है वो सत्ह-ए-बहर से पानी उछालने वाला ख़ुद अपने हाल से बेगाना होता जाता है जहाँ के दर्द को सीने में पालने वाला किसी के हुस्न ने छोड़ा कहाँ है कब कोई मता-ए-होश-ओ-ख़िरद को सँभालने वाला हमीं तो थे जो सँभाले थे नज़्म-ए-मय-खाना अब आगे कौन है इस को सँभालने वाला तुलूअ' होगा वो सूरज तो होगा मशरिक़ से किरन किरन से ज़मीं को उजालने वाला सुख़न में हर्फ़-ओ-हिकायत के गौहर-ए-नायाब वही तो है मिरी झोली में डालने वाला दिलासे देते हैं क्या क्या हम अहल-ए-उर्दू को मगर कोई नहीं होनी को टालने वाला