रहे दिल की दिल में ज़बाँ तक न पहुँचे मिरा ग़म हुदूद-ए-बयाँ तक न पहुँचे ये हस्ती न हो बे-ख़ुदी रफ़्ता रफ़्ता कहीं ख़्वाब ख़्वाब-ए-गिराँ तक न पहुँचे तिरा मर्तबा ऐ ज़मीं अल्लह अल्लाह तिरी गर्द को आसमाँ तक न पहुँचे दिया तो मिरी आरज़ू का जले और उजाला किसी के मकाँ तक न पहुँचे यही अब है बेहतर कि चुप साध लीजे कोई बात फिर दास्ताँ तक न पहुँचे न छेड़ें वो तार-ए-रग-ए-जाँ 'सआदत' कहीं नग़्मा-ए-दिल फ़ुग़ाँ तक न पहुँचे