रहे दुनिया में महकूम-ए-दिल-ए-बे-मुद्दआ हो कर ख़ुशा-अंजाम उट्ठे भी तो महरूम-ए-दुआ हो कर वतन को छोड़ कर जिस सर-ए-ज़मीं को मैं ने इज़्ज़त दी वही अब ख़ून की प्यासी हुई है कर्बला हो कर बताओ ऐसे बंदे पर हँसी आए कि ग़ैज़ आए दुआ माँगे मुसीबत में जो क़स्दन मुब्तला हो कर खुला आख़िर फ़रेब-ए-मय चला जब दर्द का साग़र बँधा ज़ोर-ए-ख़ुमार अंदेशा-ए-रोज़-ए-जज़ा हो कर निगाह-ए-'यास' ही गोया दोबारा ज़िंदगी पाई जो चौंका ख़्वाब-ए-ग़फ़लत के मज़े से आश्ना हो कर