यही तेरी रहमत सिला दे रही है मिरी बेबसी भी मज़ा दे रही है तू पूरब तो पूरबा तू पच्छिम तो पछुआ हवा भी तेरा ही पता दे रही है मैं दिन-रात तुझ को करूँ याद कितना मोहब्बत तिरी अब सज़ा दे रही है तेरे क़ाएदे में क़दम क्या पड़े बस मुझे ज़िंदगी ख़ुद निशाँ दे रही है न नज़दीक आँखों के कीजिए शम्अ' को नहीं तो कहेंगे दग़ा दे रही है पहाड़ों की साज़िश नहीं तो नहीं ये घुटन सी ये कैसी हवा दे रही है बड़ी मुश्किलों से जो शो'ले बुझे हैं उन्हें सल्तनत क्यूँ हवा दे रही है इनायत भी तेरी ये क्या दे रही है मुझे 'राज' नित दिन नया दे रही है