रहेगी कब तलक तन्हा तमन्ना नीम-जाँ मेरी खुलेगी रू-ब-रू उस के किसी लम्हे ज़बाँ मेरी पलट आती तो क्या ग़म था झुलस कर खो गई शायद हरीरी ख़्वाहिशें ओढ़े हुए आह-ओ-फ़ुग़ाँ मेरी ग़लत है वो किसी तारीक गोशे में पड़ी होगी फ़सील-ए-दिल से तो झाँकेगी सई-ए-राएगाँ मेरी शिकस्ता पर सुलगता आशियाना कुछ झुलसते फूल चमन में हर तरफ़ बिखरी हुई है दास्ताँ मेरी