रह-ए-हयात में वो भी मक़ाम आएगा यगाना काम न बेगाना काम आएगा सुरूर-ए-बादा-ए-रंज-ओ-ग़म-ए-हयात कभी न काम आया किसी के न काम आएगा हमारी ज़िंदगी-ए-मुख़्तसर का सरमाया हमारे बा'द ज़माने के काम आएगा बदल चुकी है फ़ज़ा अब निज़ाम-ए-आलम की न काम दाना किसी के न दाम आएगा यक़ीं है तिश्ना-लबों को कि उन की महफ़िल में वो जब भी आएगा बादा-ब-जाम आएगा वो जिस की याद सताती है रात-दिन 'फ़ारिग़' न क़ब्ल-ए-सुब्ह न वो बा'द-ए-शाम आएगा