रह-ए-जुनूँ में ख़ुदा का हवाला क्या करता ये ख़िज़्र रंज-ए-सफ़र का इज़ाला क्या करता गुज़ारनी थी तिरे हिज्र की पहाड़ सी रात मैं तार-ए-रेशम-ओ-ज़र का दो-शाला क्या करता न शग़्ल-ए-ख़ारा-तराशी न कारोबार-ए-जुनूँ मैं कोह-ओ-दश्त में फ़र्याद-ओ-नाला क्या करता हिकायत-ए-ग़म-ए-दुनिया को चाहिए दफ़्तर वरक़ वरक़ मिरे दिल का रिसाला क्या करता मैं तिश्ना काम तिरे मय-कदे से लौट आया किसी के नाम का ले कर प्याला क्या करता