राह-ए-उल्फ़त की आन बाक़ी है कुछ मिटी कुछ तकान बाक़ी है आह-ए-सोज़ाँ ने सब को फूँक दिया किस तरह आसमान बाक़ी है ज़ख़्म-ए-दिल मुंदमिल हुआ लेकिन एक धुँदला निशान बाक़ी है न जिगर है न दिल है पहलू में साँस चलती है जान बाक़ी है जान दे दो 'वफ़ा' मोहब्बत में आख़िरी इम्तिहान बाक़ी है