बुतों का साथ दिया बुत-शिकन का साथ दिया फ़रेब-ए-इश्क़ ने हर हुस्न-ए-ज़न का साथ दिया मिरे सुकूत ने कब अंजुमन का साथ दिया तुम्हारी चश्म-ए-सुख़न-दर-सुख़न का साथ दिया तुम्हारे गेसू-ए-पुर-ख़म पे मरने वालों ने जब आया वक़्त तो दार-ओ-रसन का साथ दिया बहार आई तो महरूम-ए-रंग-ओ-बू हैं वही जुनूँ ने दौर-ए-ख़िज़ाँ में चमन का साथ दिया बुझे जो पिछले पहर तेरी अंजुमन के चराग़ तो दाग़-ए-दिल ने मिरे अंजुमन का साथ दिया चमन में एक हमीं रह गए ख़िज़ाँ के लिए कि बुलबुलों ने भी रंग-ए-चमन का साथ दिया ख़ुदा की शान कि नंग-ए-वतन वो कहलाएँ जिन्हों ने मर के भी ख़ाक-ए-वतन का साथ दिया ख़ुदा का शुक्र कि मय्यत तो ढक गई अपनी ग़ुबार-ए-राह ने इक बे-कफ़न का साथ दिया कभी जो बज़्म में उस बुत की बात आ निकली जनाब-ए-शैख़ ने भी बरहमन का साथ दिया वो तर्ज़-ए-नौ हो कि तर्ज़-ए-कुहन 'वफ़ा' हम ने हर एक तरह मज़ाक़-ए-सुख़न का साथ दिया