रह-ए-वफ़ा में हमें जितने हम-ख़याल मिले उन ही की आँखों में हम को कई सवाल मिले वो लोग जिन की हमें फ़िक्र रहती है हर दम वो जब कभी भी मिले हम से हस्ब-ए-हाल मिले किसी घराने किसी ज़ात से नहीं मतलब ये हम भी जानते हैं दिल मिले ख़याल मिले मैं किस तरह से परेशान-हाल उन्हें समझूँ वो अपने हुस्न-ए-अमल से तो माला-माल मिले बहुत से लोग मिले हम को अपनी दुनिया में कोई न समझा बहुत यूँ तो हम-ख़याल मिले 'किरन' वो पिछले दिनों की तो बात और ही थी अगरचे मिलने को यूँ कितने माह-ओ-साल मिले