राह-ए-वफ़ा में कोई हमें जानता न था जब तक दिया हमारे लहू का जला न था ये मो'जिज़ा हमारे ही तर्ज़-ए-बयाँ का था उस ने वो सुन लिया था जो हम ने कहा न था जब आशियाने जल गए तब हम-नवा हुए गुलशन में इस से पहले कोई बोलता न था तू ख़ुद ही क़तरा क़तरा पिघलता था रोज़-ओ-शब शामिल तिरे ज़वाल में दस्त-ए-दुआ' न था शिद्दत की धूप में भी न पिघला मिरा वजूद मुझ पर तुम्हारी ज़ुल्फ़ों का जब शामियाना था जुगनू था कहकशाँ था सितारा था या गुहर आँसू किसी की आँख से जब तक गिरा न था 'अख़्तर' गुनाह करने से फिर रोकता था कौन मैं कैसे मान लूँ कि वहाँ पर ख़ुदा न था