रहगुज़र शीशे की है न उस का दर शीशे का है दर-हक़ीक़त अपना ही रख़्त-ए-सफ़र शीशे का है चलता फिरता बोलता सुनता समझता है मगर लगने को कुछ भी लगे हर इक बशर शीशे का है आदम-ओ-इबलीस का किरदार देता है सबक़ ख़ैर है फ़ौलाद की मानिंद शर शीशे का है बे-सबब टकराओ मत तहज़ीब के रस्म-ओ-रिवाज कुछ इधर शीशे का है तो कुछ उधर शीशे का है वक़्त का पत्थर तो चकना-चूर कर देगा उसे ग़ौर से देखो ज़रा ज़ालिम का घर शीशे का है तुझ से पहले टूट कर बिखरे यहाँ कितने 'शफ़ीक़' क्या नहीं मालूम शोहरत का समर शीशे का है